Monday, April 13, 2009

prajatantra

गोदी में लिए बच्चा, आंचल मुंह में ठूंसकर
वह मांगती चिल्लर, मरीन ड्राइव के पथ पर.


हवा खाते चंद खुसट और चिपटे प्रेम पंक्षी
ताके नाक-भौंह सिकोड़कर
जब वह मांगती चिल्लर, मरीन ड्राइव के पथ पर.


सिगरेट पीते मुम्बईया छोरे
फिकरे कसे तानकर
फिर भी वह मांगती चिल्लर मरीन ड्राइव के पथ पर.



उत्साह से लबरेज अंग्रेज
खुश होते क्लिक-क्लिक कर
जो वह बीनती चिल्लर मरीन ड्राइव के पथ पर।


डेमोक्रेसी थी निराला जब लिख गए थे तुम
अब पत्थर फोड़े मशीनें, फौरन से पेश्तर
इसलिए वह मांगती चिल्लर मरीन ड्राइव के पथ पर.

4 comments:

  1. दिल के अन्दर तक जाती हुई रचना ...काबिले तारीफ

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

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  2. बहुत ही सुन्दर भाई जी ।

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  3. माँग रहे चिल्लर वही जो होते मजबूर।
    उनकी पीड़ क्या कहें रोटी जिनसे दूर।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
    कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  4. hey mate really it touches heart of every.....a genuine thing that straight comes from the heart of urs..

    i never ever thought that any of my fren wud be a gr8 writer like whom i read in the book uptill now.

    now m vry proud to say that m a fren n fan of my poet fren diggi alias durgesh

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