कभी न थमने वाला सफर हूं
पसीजी रात के बाद का प्रहर हूं,
हरे-भरे, घने-बने जंगलों पर
इमारतें बोता कहर हूं
मैं महानगर हूं, मैं महानगर हूं.
सड़कों पर पड़ी है तहजीब
ढूंढता अपने घर हूं,
देश अब नहीं भाता तो
विदेश की डगर हूं
मैं महानगर हूं, मैं महानगर हूं.
बीघों पड़ी वीरान जिंदगी
नापता फीट स्कैवयर हूं,
सिक्कों के शोर में बह रहे
खालिस जज्बातों की नहर हूं
मैं महानगर हूं, मैं महानगर हूं.
रचना के भाव बहुत अच्छॆ है। बधाई।
ReplyDeleteचकाचौंध मे डूबी दुनियाँ पर जीवन का सार यही।
ReplyDeleteकमी समय की महानगर में भाव खतम हैं प्यार नहीं।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
maa kasam kya likha hai yaar. Gazab hai bhai.kya likha hai. theek to hai, tabiyat to kharab nahi naa.
ReplyDeletemaja aa gaya...bahut khoob!!
ReplyDeletegreat ..............vah re mahanagar
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